स्वाधीनता संग्राम में लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें से कुछ ही लोगों के विषय में हमारी पाठ्यपुस्तकों में पढ़ने को मिलता है। आज हम बात कर रहे हैं भारतीय स्वाधीनता संग्राम के ऐसे ही एक वीर सपूत बाजी राउत की जिन्होंने महज 12 वर्ष की आयु में अंग्रेजों का प्रतिकार किया। जिनके बुलंद हौसलों को अंग्रेजों की गोलियां भी डिगा न सकीं। भारतीय इतिहास में उनका नाम सबसे कम उम्र के शहीद के रूप में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
बाजी राउत का जन्म 5 अक्टूबर, 1926 को ओडिशा के ढेंकनाल में हुआ था। उनके पिता हरि राउत पेशे से नाविक थे। जन्म के कुछ वर्ष पश्चात ही पिता का देहावसान हो गया। पालन-पोषण मां द्वारा किया गया। उस समय ढेंकनाल के राजा शंकर प्रताप सिंह देव अंग्रेजों के स्वामी-भक्त थे। अतएव शंकर प्रताप ने अंग्रेजों के आदेश पर ढेंकनाल की जनता पर क्रूरता एवं शोषण की सारी हदें पार कर दीं। इससे लोगों में राजा और अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश बढ़ता ही गया।